यह पुस्तक करुण और मर्मांतक दास्तान है उन पीडि़तों की, जिन पर एसिड उड़ेलकर उनकी जिंदगी नर्क बना दी गई। यह दस्तावेज है, उन अनसुनी-अनकही हकीकतों का, जिन पर अब तक ध्यान नहीं दिया गया। एसिड हमले के बाद पीडि़त किस किस्म की शारीरिक और मानसिक यंत्रणा से गुजरती है; वो और उसका परिवार कैसे टूटता चला जाता है और सिस्टम कैसे मूकदर्शक बनकर सबकुछ देखता रह जाता है, यह पुस्तक उसी की छानबीन है। पीडि़तों के संघर्ष के मनोवैज्ञानिक पहलू भी बेहद विचलित करनेवाले हैं, जिनका इस पुस्तक में गहराई से विश्लेषण है।
समाज में एसिड फेंककर किसी का जीवन बरबाद कर देनेवाली बढ़ती घटनाओं के प्रति आक्रोश, उनको रोकने के प्रयास और पीडि़तों के संघर्ष की सफल-गाथा है यह पुस्तक।