?अच्छे दिन? शब्द मात्र है या इसकी अवधारणा पिछले ढाई साल में जमीन पर भी उतरने लगी है। अच्छे दिन को लेकर हमारे देश में कई तरह की बातें कही जा रही हैं। अच्छे दिन को लेकर मतभिन्नता की स्थिति के जाले को साफ करने के लिए यह बेहद जरूरी था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली मौजूदा केंद्र सरकार की योजनाओं को परखा जाए, जमीन पर भी और आँकड़ों के आधार पर भी। यह पुस्तक दोनों स्तरों पर अच्छे दिन की अवधारणा को कसौटी पर कसती है। इस बौद्धिक विमर्श को मूर्त रूप दिया है देशभर के बुद्धिजीवियों और अलग-अलग इलाकों में काम कर रहे पत्रकारों ने। अच्छे दिन को लेकर जो भ्रम का वातावरण बनाने की कोशिश की जा रही है, उसको ये किताब निगेट करती है।